028/2025
[माघ,फागुन,संन्यास,फगुनाहट,प्रस्थान]
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
माघ पूर्णिमा पावनी, सुरसरिता के तीर।
नहा रहे धर्मी सभी, धरे देह शुभ चीर।।
दान पुण्य का माघ में,अति महत्त्व मतिमान।
अघ ओघों से मुक्ति हो, करते मनुज नहान।।
अरुण वसंती रंग से, फूले फागुन मास।
पाटल गेंदा झूमते, कलियाँ करतीं हास।।
फागुन में फगुआ मचे,डफ ढोलक का संग।
भौजी रँग - वर्षा करे, दर्शक होते दंग।।
पूस माघ संन्यास ले, विदा हुए हैं मीत।
वन-वन टेसू फूलते, मधु माधव की जीत।।
कर्मशील मानव बनें, धरें नहीं संन्यास।
मात-पिता भी चाहते, मन में धर विश्वास।।
फगुनाहट हर ओर है, भ्रमर रहे हैं झूम।
कली-कली आलिंगना, रहे सुमन को चूम।।
नर-नारी मदमस्त हैं, फगुनाहट का घाम।
अंग -अंग को सालता,ऊष्मा ललित ललाम।।
षड् ऋतुओं का आगमन,क्रमशः फिर प्रस्थान।
राजा मात्र वसंत ही, सुमन सजा उद्यान।।
मान नहीं जिस ठौर में,उचित न रहना और।
करना ही प्रस्थान है,भले लाख सिरमौर।।
एक में सब
माघ-शीत संन्यास से, करे ठंड प्रस्थान।
फागुन आया झूमकर, फगुनाहट का मान।।
शुभमस्तु !
21.01.2025●11.30प०मा०
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