गुरुवार, 30 जनवरी 2025

हादसा [ सोरठा ]

 053/2025

                    


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


टूटे तब जंजीर,कड़ियाँ जब कमजोर हों।

रखे न मानव धीर,हो सकता है हादसा।।

धारण करना धीर,पहला लक्षण धर्म का।

कहे मनुज मैं मीर,हो जाता जब हादसा।।


मनुज अन्य की ओर,दोषारोपण कर रहे।

बिल में खोजें चोर,हुआ हादसा घाट पर।।

देता जो अंजाम,क्षमा नहीं उसको कभी।

लुटे-मिटे नर धाम,अघटित है जो हादसा।।


संभव है क्या मीत,पैसे से प्रतिकार क्या?

समय हुआ विपरीत,रोक न पाए हादसा।।

कारण होते लोग, होता  है  जब हादसा।

बन जाते  हैं रोग,त्वरा दिखाते स्वार्थ  की।।


रक्षक   हैं   श्रीमान, सावधानियाँ ही सदा।

चाहे  कुंभ-नहान,  हो न  हादसा देश में।।

हुआ हादसा  एक,  महाकुंभ   के   पर्व में।

पकड़ रहे जन टेक,रूढ़िवादिता की सदा।।


भरा हुआ अविवेक,जन का एक कुकृत्य ही।

नहीं  भाव  उर नेक,बने हादसा भी   वही।।

बुरा हादसा एक , मौनी  मावस को   हुआ।

घायल मनुज अनेक,हुए हताहत लोग भी।।


भरे हृदय कुविचार,मानव सभी न नेक हैं।

ढूँढ़ें कहाँ विकार, होता   है  जब हादसा।।


शुभमस्तु !

30.01.2025●2.15प०मा०

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