शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

ज्ञात से अज्ञात मैं [संस्मरण ]

 038/2025

 

 ©लेखक

 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 मेरी मात्र तिहत्तर वर्ष की वर्तमान आयु और कुल बासठ वर्षों की अनवरत साहित्य साधना में गंगा में बहुत सारा गंगाजल बह गया;किन्तु उस सबका परिणाम मेरे समक्ष होने के बावजूद मैं उसका सही- सही आकलन आज तक नहीं कर पाया। अतीत के इन बासठ वर्षों में शोध साहित्य,कहानियाँ, गद्यात्मक व्यंग्य सहित्य,काव्यात्मक व्यंग्य साहित्य, महाकाव्य, खंडकाव्य,अतुकांत साहित्य,ग़ज़ल गीतिका काव्य,गीत,नवगीत साहित्य,बाल काव्य,उपन्यास, कुंडलिया साहित्य,दोहा साहित्य,भक्ति साहित्य,एकांकी,लघुकथाएं आदि विविधतापूर्ण का सृजन हुआ है;किंतु 31 कृतियों के प्रकाशन के बावजूद अभी तक यह ज्ञात ही नहीं कर पाया कि इनकी कितनी संख्या है।जैसे गंगोत्री धाम को नहीं पता कि उसने कितना गंगाजल इस धराधाम और सागर अबाध को बहा दिया।

  यों तो 1968 में हाई स्कूल में आते -आते मेरे लेखों,कविताओं,व्यंग्यों और कतिपय शोध पत्रों का प्रकाशन कॉलेज पत्रिकाओं, राष्ट्रीय मासिक पत्रों और दैनिक समाचार पत्रों में प्रारम्भ हो गया था; किंतु मेरी साहित्यिक यात्रा की जिस प्रथम काव्य कृति का प्रकाशन वर्ष 1992 में हुआ वह थी दोहा चौपाई शैली में निबद्ध हास्य व्यंग्य कृति 'श्रीलोकचरितमानस'। 1992 में मेरी पूजनीया माँ का बिना किसी बीमारी के आकस्मिक निधन होने पर मुझे बहुत सदमा लगा और राजकीय सेवा में घर से 350 किलोमीटर दूर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बीसलपुर (पीलीभीत) में होने के कारण मैं उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका। तब उसी शोक अवधि में जो खंडकाव्य कृति प्रकाश में आई ,वह 'बोलते आँसू' के रूप में 1993 में प्रकाशित हुई ;जिसे शृंगार छंद में पूर्ण किया गया। यह एक खंडकाव्य था। यह कृति मात्र तीन दिन में पूर्णता को प्राप्त हुई।इसके बाद कृतियों के प्रकाशन की शृंखला ही प्रारंभ हुई जो निरन्तर प्रवहमान है। 

 अपने अद्यतन प्रकाशित साहित्य को मैंने चौदह भागों में विभाजित किया है।इसमें पहला है 'व्यंग्य साहित्य' ;जो अपने दो रूपों में विभाजित किया जाता है।पहले भाग में व्यंग्यात्मक काव्य सृजन है :जिसके अंतर्गत 1. श्रीलोकचरितमानस (1992) 2.सारी तो सारी गई (2009) 3.'शुभम्' कहें जोगीरा(2024) हैं। द्वितीय भाग में व्यंग्यात्मक गद्य सृजन है।जिसके अंतर्गत क्रमशः चार कृतियाँ 1.'शुभम्' व्यंग्य वातायन(2020) 2.विधाता की चिंता (2022) 3.'शुभम्' व्यंग्य वाग्मिता (2023) 4.'शुभम्' व्यंग्योत्सव (2024) प्रमुख व्यंग्य कृतियाँ हैं।

    मेरे प्रकाशित साहित्य का द्वितीय रूप है 'महाकाव्य' ;जो वर्ष 2018 में तपस्वी बुद्ध के रूप में वैविध्य पूर्ण छंदानुबद्ध हुआ।इसकी रचना उसी समय हो गई थी जब 1971 में मैं ग्यारहवीं कक्षा का विद्यार्थी था। सहित्य के तृतीय रूप के अंतर्गत 'खंडकाव्य' की तीन कृतियाँ प्रकाश में आईं: 1.बोलते आँसू (1993) 2.ताजमहल (2008) 3.फिर बहे आँसू (2018) ये तीनों कृतियाँ क्रमशः तीन, सात और तीन दिन में लिखी गई रचनाएँ हैं। 

  'ग़ज़ल और गीतिका संग्रह' प्रकाशित कृतित्व का चतुर्थ रूप है।जिसके अंतर्गत 1.स्वाभायनी (2000) 2.रसराज (2011) 3.'शुभम्' ग़ज़ल गीतिकायन (2023). हैं। प्रकाशित कृतियों के पंचम रूप के अंतर्गत मेरे 'गीत संग्रह' 1.'शुभम्' गीत गंगा और 2.'शुभम्' राम ही साँचा आगणित किए जाते हैं। सहित्य के षष्ठ रूप 'बाल साहित्य',जिसके अंतर्गत बालगीत एवं बाल कविताएँ हैं ,तीन पुस्तकें प्रकाश में आई हैं: 1.आओ आलू आलू खेलें(2020) 2. 'शुभम्' बालसुमन स्तवक(2023) 3. 'शुभम्' बालगीत वाटिका(2024) . 'शोध साहित्य' प्रकाशित साहित्य का सप्तम रूप है। जिसमें मेरा शोध प्रबंध 1.नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्त्व(2008)। और 2.'शुभम्' शोध साहित्य (शोध पत्र संग्रह) (2024) सम्मिलित किए जाते हैं।

  साहित्य के अष्टम रूप के अंतर्गत 'उपन्यास' ग़ज़ल (2008) को समाहित किया गया है। मेरे साहित्य का नवम रूप 'कुंडलिया साहित्य' है जिसके अंतर्गत 'शुभम्' कुण्डलियावली (2022)प्रकाशित हुई। दशम रूप 'दोहा सृजन' का जो 1.अक्षर अक्षर ब्रह्म है (2023) 2.'शुभम्' दोहा दीप्ति (2023) के रूप में सामने आया है। 'भक्ति साहित्य' मेरे प्रकाशित कृतित्व का एकादश रूप है। जिसके अंतर्गत 1.'शुभम्' स्तवन मंजरी(2022) 2.'शुभम्'भक्ति रसांजन (2023) प्रमुख हैं। यों तो महाकाव्य 'तपस्वी बुद्ध 'और 'शुभम्' राम ही साँचा कृतियों को भी इसके अन्तर्गत समाहित किया जा सकता है। द्वादश रूपान्तर्गत 'चौपाई संग्रह' की पुस्तक 'शुभम्' सृजन वल्लरी (2024) है। सहित्य के त्रयोदश रूप में नाटक, कहानियां और कतिपय प्रारम्भिक व्यंग्य रचनाएँ आती हैं। जो 'अहल्या पत्थर की नहीं थी' (2024) के रूप में प्रकाशित हुई है।इस कृति में दो एकांकी ,कुछ कहानियाँ और व्यंग्य आलेख प्रत्यक्ष हुए हैं।ये वे रचनाएँ हैं जो 1980 से पूर्व अधिकांशतः देश की स्तरीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। 'अतुकांत काव्य सृजन' का चतुर्दश रूप 1.गणतंत्र की तस्वीर का दूसरा रुख(2024) और 2.'शुभम्' शब्दरस रंजनिका (2025) के रूप में सामने आया है।

  इस प्रकार 1992 से 2025 के प्रारंभिक मास तक 31 साहित्यिक सृजन की शुभम् शृंखला आपके समक्ष प्रस्तुत है। जिनमें गद्य और पद्य के अंतर्गत विविध छंदों और अछंदों की साहित्य लहरियाँ प्रवहमान हुई हैं। फिर वही बात दुहराता हुआ यही कहूँगा कि अब तक कितनी रचनाएँ प्रकाशित और अप्रकाशित हैं; उनका कोई संख्यांक उपलब्ध नहीं है। बस गंगा बह रही है और अपने गंतव्य की ओर निरंतर गतिमान है। 

 सर्वे    भवंतु    सुखिनः    सर्वे    संतु   निरामयाः। 

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःखभाक् भवेत।।

 शुभमस्तु ! 

24.01.2024● 10.30 आ०मा०

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