005/2025
समांत : अण
पदांत : में
मात्राभार :16
मात्रा पतन : शून्य
सब कुछ बदल रहा क्षण-क्षण में।
प्रभु का वास यहाँ कण-कण में।।
शांति नहीं मानव को प्यारी।
जुटा हुआ पल - पल वह रण में।।
कलियों का विकास सुमनों में ।
सुमन व्यस्त हैं रस - वर्षण में।।
धूल लदी मन पर अति सारी।
झाड़ रहा है मुख दर्पण में।।
मानव डूबा अहंकार में।
आग धधकती मन के व्रण में।।
जनक -जननि की सेवा कर ले।
लगा न जीवन अपना पण में।।
'शुभम्' सोच संकीर्ण अशोभन।
किंचित शांति नहीं जनगण में।।
शुभमस्तु !
06.01.2025●5.30आ०मा०
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