सोमवार, 20 जनवरी 2025

सब कुछ बदल रहा [ सजल ]

 005/2025

            

समांत      : अण

पदांत       : में

मात्राभार   :16

मात्रा पतन : शून्य


सब  कुछ  बदल रहा  क्षण-क्षण में।

प्रभु का  वास  यहाँ   कण-कण में।।


शांति  नहीं   मानव     को    प्यारी।

जुटा  हुआ   पल - पल वह रण में।।


कलियों का   विकास    सुमनों  में ।

सुमन  व्यस्त   हैं   रस - वर्षण   में।।


धूल   लदी  मन   पर    अति  सारी।

झाड़    रहा   है  मुख    दर्पण   में।।


मानव      डूबा      अहंकार      में।

आग  धधकती   मन   के   व्रण में।।


जनक -जननि   की   सेवा  कर ले।

लगा न जीवन   अपना   पण   में।।


'शुभम्'  सोच  संकीर्ण   अशोभन।

किंचित शांति नहीं  जनगण    में।।


शुभमस्तु !


06.01.2025●5.30आ०मा०

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