सोमवार, 20 जनवरी 2025

भूल गए सब रंग [ गीत ]

 012/2025

                


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नोंन तेल लकड़ी

की तिकड़ी

भूल गए सब रंग।


मस्ती के दिन

नहीं लौटते

गुल्ली डंडा खेल।

मित्र  सखाओं की

महफ़िल में

चलती छुक- छुक रेल।।

भूल गए वे

खेल खिलौने

छूट गया वह संग।


दुनियादारी की

चिंता क्या 

कभी न सोची बात।

नहीं जानते थे

क्या तिकड़म

नहीं जानते घात।।

सदा खिलंदड़

रहता तन- मन

खेले नंग -धड़ंग।


जा बस्ती से

दूर कहीं पर

खेले रंग हजार।

इधर - उधर की

बात न कोई

बचपन था उपहार।।

तेरी गुल्ली 

मेरा डंडा

यही एक थी जंग।


शुभमस्तु !


14.01.2025● 5.00आ०मा०

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