009/2025
समांत :अना
पदांत : है
मात्राभार :16
मात्रा पतन : शून्य।
शब्दकार©
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मानव इतना आज तना है।
अहंकार का धूम घना है।।
समझे नहीं किसी को अपना।
तमस पंक में निपट सना है।।
धन - संपति के रिश्ते हैं सब।
मानवता के लिए मना है।।
बालाओं को पति पसंद वह।
पैसों से जो बना - ठना है।।
चरित घास घूरे पर चरता।
भ्रष्ट आचरण का जपना है।।
नर नहला तो दहला नारी।
संस्कृतियों को यों मिटना है।।
'शुभम्' गर्त में मानव प्रति क्षण।
भाड़ न फोड़े एक चना है।।
शुभमस्तु !
12.01.2025●10.00प०मा०
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