बुधवार, 1 जनवरी 2025

मंगलमय नववर्ष हो [ दोहा ]

 001/2025

         


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


श्रीगणेश  नववर्ष  का,   दो   हजार पच्चीस।

विदा  विगत  कल हो गया,दो हजार चौबीस।।

प्रथम दिवस बुध का 'शुभम्',आया वर्ष महान।

आशाएँ    उत्कर्ष   का,  ताना   भोर वितान।।


मेरा     देश   महान  हो,  जगती में हो   नाम।

नए   वर्ष   में   देश  में,  बड़े-बड़े  हों   काम।।

भूखे   को  रोटी   मिले,  प्यासे को सद   नीर।

दुश्मन   छोड़ें   देश   को,  जाग उठे तक़दीर।।


सुमन  खिलें  उत्कर्ष के,फूलें फल धन  धान्य।

मानदंड  हों  उच्च   ही, बने जगत में  मान्य।।

गौ    गंगा   गीता     सभी, गायत्री हैं     धन्य।

मात - पिताका मान  हो, गुरु हों  श्रेष्ठ  अनन्य।।


शिक्षा का   सम्मान हो, शिक्षक का उत्कर्ष।

प्रियता की कविता कहें,कवि सारे सह  हर्ष।।

वैर भाव  जग  से मिटे , बजे शांति का शंख।

युवा   जगत  के शून्य में,उड़ें लगा नव  पंख।।


वृद्धाश्रम इस देश में ,खो  दें  निज अस्तित्व।

वृद्धों का  सम्मान   हो, जागे  नर-  नारीत्व।।

राजनीति  इस  देश  की,हितकारी हो  नित्य।

भला करे नर-नारि  का,चमके शुभ आदित्य।।


नेता   ऐसे    चाहिए,    कर्मठ   सच्चे   धीर।

लूट  देश   घर   में  भरें,  नहीं  चुनें वे   'वीर'।।


शुभमस्तु !

01.01.2025●6.15आरोहणम मार्तण्डस्य।

                      ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...