022/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
यही अन्नदाता
भारत का
फतुही पहने छेद हजार।
गिरे रात भर
आँधी पानी
होती ओलों की बरसात,
दुखी दृष्टि से
खेत निहारे
हुआ वज्र का भीषण पात,
हाय विधाता
क्या होगा अब
कठिन भाग्य की पड़ती मार।
पसर गई है
फसल खेत में
हाथ न आए दाना एक,
पीले कैसे
हाथ करूँगा
बिटिया हुई सयानी नेक,
नहीं भाग्य के
आगे चलता
जोर किसी का हुआ प्रहार।
फटेहाल तो
था पहले ही
साबुत वसन नहीं थे देह,
साड़ी फ़टी
हुई है पहने
घरनी मेरी मेरे गेह,
'शुभम्' नहीं
रो सकता खुलकर
रोता है दिल जारम जार।
शुभमस्तु !
21.01.2025●3.00आ०मा०
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