बुधवार, 22 जनवरी 2025

स्वार्थ ही आधार है [नवगीत]

 025/2025

         

©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कौन अपना

या पराया

स्वार्थ ही आधार है।


आदमी में आदमीपन

ताड़ से नीचे गिरा है,

रो रहीं ममता दया भी

कनक पैसे से घिरा है,

आदमी ने आदमी के

प्रेम को जिंदा चबाया

स्वार्थ ही आधार है।


मान मिलता जनक माँ को

अब नहीं तिल मात्र भी,

पल्लुओं से जा बँधे सुत

चाहते तिय गात्र ही,

काम्य हैं बस कामिनी ही

नारियों ने नर लुभाया

स्वार्थ ही आधार है।


बाप बूढ़े सड़ रहे हैं

पुत्र को चिंता कहाँ,

तीय आलिंगन लुभाता

अब नहीं संतति यहाँ,

और कुछ दिखता नहीं है

काम का ही लुब्ध साया

स्वार्थ ही आधार है।


शुभमस्तु !


21.01.2025● 3.45 प०मा०

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