शनिवार, 25 जनवरी 2025

मालिक [ व्यंग्य ]

 041/2025


©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

 हमारे यहाँ 'मालिक' शब्द का विशेष महत्त्व है। यों तो 'मालिक' शब्द की संरचना 'माल' शब्द से हुई होगी,ऐसा प्रतीत होता है। इसी से मालकियत,मालिकाना,मालिकी आदि शब्दों का सृजन हुआ होगा।जो भी हो ,अरबी भाषा के 'मलिक' या 'मालेक' शब्द की हिंदी में भी पूरी मालकियत है।उसे यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ मालिकाना हक प्राप्त है। कभी ईश्वर के अर्थ में तो कभी स्वामी या अधिपति के अर्थ में मालिक शब्द बख़ूबी प्रयुक्त होता है। जब वह ईश्वर को मालिक कहता है तो यही गाते हुए दिखाई देता है :'मालिक तेरे बंदे हम!' सामान्यतः वह सबसे बड़ा मालिक अपने को ही मानता है।अपने सामने वह किसी की मालिकी स्वीकार करने के दम्भ को छोड़ना नहीं चाहता। आखिर मालिक तो मालिक ही है और मालिक ही रहेगा ,मालिक ही रहना चाहेगा। 

 जब 'मालिक' शब्द की चर्चा प्रारम्भ हुई है तो यह जिज्ञासा भी स्वाभाविक है कि किसी कार्यस्थल पर ,विवाह - शादी के अवसर पर उपस्थित भीड़ में मालिक क्या असली मालिक की पहचान कैसे हो ? जहां तक मैं समझता हूँ कि किसी समारोह आदि में जो आदमी अपनी कुछ विशेष मुद्राओं में घूमता -टहलता ,कुछ भी नहीं करता हुआ सबसे निकम्मा दिखाई दे,उसे बिना सोचे समझे,बिना पूछे या जाँच पड़ताल किए हुए 'मालिक' या लड़की का बाप या लड़के का बाप मान लेना चाहिए। वह व्यक्ति कमर पर हाथ रखे हुए बड़ी ही चौकन्नी नजरों से इधर उधर दिखाई देता है।कभी -कभी वह अपनी दोनों भुजाओं को अपने वक्षस्थल पर एक दूजे में बाँधे हुए दृष्टिगोचर हो सकता है। उसकी एक मुद्रा यह भी हो सकती है कि वह अपने दोनों हाथ अपनी पीठ पीछे लटकाये हुए दाएँ हाथ से बाएँ हाथ को पकड़े हुए अथवा बाएँ हाथ से दाएँ हाथ को थामे हुए अपनी ही मस्ती में खड़ा अथवा टहलता हुआ दिख जाए। मानो सोच रहा हो मुझे क्या करना है, मैं तो इस फंक्शन का मालिक हूँ ही। मुझे तो बस यह देखना है कि कहीं कोई कमी तो नहीं है। यदि कमी हो तो उसे किसी से कहकर पूरा भी कराना है। हाँ, मुझे स्वयं कुछ नहीं करना है। मालिक भी कहीं काम करते हैं! कभी - कभी वह अपना दाहिना हाथ उठाए हुए अपनी तर्जनी अँगुली से किसी को कुछ 'ऐसे करो' , 'यह लेकर आओ' ,'नाई ठाकुर को बुलाओ', 'बल्लियाँ गाड़ो', 'टेंट लगाओ', 'लाइट जल्दी जल्दी सेट करो,बारात आने वाली है', जैसे आदेश - निर्देश देता हुआ दिखाई दे। 

 'मालिक' एक रुतबेदार ,गर्व और गुरूर से गौरवान्वित नाम है।अब चाहे वह किसी बनते हुए मकान का मालिक हो अथवा किसी देश या प्रदेश का मालिक।मैं यह नहीं कहता कि देश या प्रदेश का मालिक कोई काम नहीं करता।वह जो भी करता है,वह भी तो किसी काम से कम नहीं है।जिम्मेदारी भी किसी काम से कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। यह तो अपने- अपने लक की बात है कि कौन कब कहाँ का 'मालक' (मालिक) बनता है।यह देश ही ऐसा है कि यहाँ काम न करना पड़े इसलिए लोग मालिकी ढूंढ़ते हैं।जितना बड़ा पद ,उतना काम कम ,जिम्मेदारी ज्यादा। वस्तुतः मालिकी एक इशारेबाजी का काम है। अपने इशारों या रिमोट से सत्ता चलती रहे, यही मालकियत है। माल को करने वाला (माल+क) ही मालिक कहलाने का सच्चा अधिकारी है। 

 जो किसी 'माल' का 'मालिक' है ,वह उस माल का जो भी करे। चाहे पचाए या बंटवाए या ललचाए।जिस पर माल नहीं,वह उसे पचा भी नहीं सकता। चाहे तो मजा करे ,चाहे तो पचा कर आगे बढ़े। जैसे इस देश में पुल, सरिया,सीमेंट,जमीन, हवाई जहाज, लड़ाकू विमान,चारा, गाय-गोरू और न जाने क्या-क्या हजम हो गए। यह काम किसी मालिकाना हकदार के बिना हो नहीं सकता।लेबर,चपरासी कभी चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता। हाथी को हजम करने का हाजमा भी तगड़ा ही होना चाहिए। जो किसी गैर मालिक का साहस नहीं हो सकता।मालिक वही जो दमदार हो सही।

 मालिक चाभे माल को,साहस भी बरजोर। 

चिलमचोर करता रहे, भले बड़ा ही शोर।। 

मालिक घूमे टेंट में, रखे कमर पर हाथ।

 चार लोग सँग में खड़े,हुकुम करो हे नाथ।। 

 अंत में यही कहना चाहूँगा कि अपने अंदर बैठे हुए मालिक की खोज करें कि उसने किस सीमा तक आपको मालिक बना रखा है। हमारे यहाँ संस्था का बॉस,स्त्री का पति ,संतति का जनक, जिले या तहसील का सर्वोच्च अधिकारी भी मालिक ही हैं।वे खाएँ ,फैलाएं या लुढ़काएँ।किसी को सताएँ या न सताएँ ,पर अपना लक्ष्य पूरा कराएँ। मालिकों को माल को माल ही समझना है ;कोई मैल नहीं।जिस वस्तु ,व्यक्ति ,संस्था,संस्थान, मकान,धन,धान्य,फेक्ट्री,भैंस,गाय, मसाला,घी ,धनिया, मिर्च, हल्दी, गधा ,घोड़ा,कुत्ता,बिल्ली, बकरी, कारखाने ,स्कूल ,कालेज ,तहसील,जिला ,प्रदेश या देश का आपको मालिक बनाया गया है,उसका सम्मान करें और लीद को धनिया, चर्बी को घी ,पानी को दूध सिद्ध करने में शर्म महसूस करें। पता लगा कि उसके दाग-धब्बे धोने के लिए कुंभ-स्नान का टिकट कटाना पड़े। 

 शुभमस्तु !

 25.01.2025●1.45प०मा० 

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