040/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बोते अधिक
निराई कम हो
उगते खरपतवार।
बड़े गुणीजन
सीख दे रहे
लिखने को नवगीत,
करो गुड़ाई
अच्छी खासी
तब निकले नवनीत,
कथ्य कहन
सब भाव सही हों
अंतर्वस्तु निनार।
वर्तमान के
सरोकार से
जुड़ा हुआ नव कथ्य,
परंपराएं
टूट गई हैं
लेना ही है पथ्य,
देश काल को
कैसे भूलें
कवि हो अलग विचार।
'नव गति नव लय
ताल छंद नव,
सुकवि निराला रीत,
सदी आज
इक्कीस खोलती
नवगीतों की प्रीत,
खुले झरोखे
नए शोध के
मिला 'शुभम्' का प्यार।
शुभमस्तु !
24.01.2025● 5.45 प०मा०
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