शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

बेच रहे जो तेल [ नवगीत ]

 036/2025

           


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप शुभम्'


शहद ढूँढ़ता

डिग्रीधारी

बेच रहे जो तेल।


रात -रात भर

आँखें फोड़ीं

सौ में सौ की बात,

आया जब

परिणाम देखता

नब्बे की  सौगात,

साला हुआ

परीक्षक अपना

किया गया है खेल।


डिग्री खाए

चाट पकौड़ी

धारक नत सिर भाल,

डॉक्टरेट से

क्या मिल पाया

मुझको बड़ा कमाल,

सोच रखा था

मन में भीषण

चले नोट की रेल।


पाते एक हजार

रोज के

बिना पढ़े मजदूर,

एक माह में

मिलें सहस दो

बड़े- बड़े मजबूर,

उचित यही अब

बिना टिकट हम

करें जेल से मेल।


शुभमस्तु !


23.01.2025 ● 5.00प०मा०

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