शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

रस भरे फल को निचोड़ूँ [ नवगीत ]

 032/2025

     


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रस भरे फल को निचोड़ूँ

सोचता हूँ।


पेड़ की फुनगी 

बहुत ऊँची बड़ी है,

उधर पेड़ों की

कतारें भी खड़ी हैं,

एक शाखा भी न मोड़ूँ

सोचता हूँ।


आम खाए 

जो मधुर खट्टे रसीले,

शूल चुभते

जो भरे विष के कँटीले,

जहर की झाड़ी न छोड़ूँ

सोचता हूँ।


आदमी को खूब परखा

मैं न जाना,

है पहेली जिंदगी ये

आज माना,

चाह की बदराह तोड़ूँ 

सोचता हूँ।


कौन अपना या पराया

सोचना क्या,

स्वार्थ के सम्बंध सारे

कब भुलाया?

झूठ  की ग्रीवा मरोड़ूँ

सोचता हूँ।


मंजिलें सबकी अलग हैं

अलग पथ भी,

है नहीं तुलना किसी से

अलग रथ भी,

'शुभम्' का नव पंथ जोड़ूँ

सोचता हूँ।


शुभमस्तु !


23.01.2025● 9.15आ०मा०

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