गुरुवार, 30 जनवरी 2025

ऋतुराज [कुंडलिया]

 056/2025

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

होता  है  शुभ  आगमन,   माधव की  पदचाप।

पड़ी  सुनाई   कान  में, बढ़ता  है रवि     ताप।।

बढ़ता  है  रवि   ताप, भूप  ऋतुराज    नवेला।

फैला  अतुल  प्रताप, धरा  पर आज  अकेला।।

'शुभम्'  भ्रमर दल  गूँज,हर्ष के नव कण बोता।

जड़-चेतन  में  नित्य, उजाला बढ़कर   होता।।


                         -2-

होते   हैं  बदलाव  बहु, धरती पर चहुँ    ओर।

कहीं    कोयलें   कूकतीं,  कहीं नाचते   मोर।।

कहीं   नाचते  मोर, राम  जपती पिड़कुलिया।

आया   है   ऋतुराज, चहकती मानव -दुनिया।।

'शुभम्'   भोर  में गीत , गा रहे जो नर   सोते।

मुर्गे   देते   बाँग,  कुकड़   कूँ   जपते    होते।।


                         -3-

बौरे   हैं  फिर  आम  के, तरुवर  है ऋतुराज।

मधुपाई  मधुमक्खियाँ,रहीं भिनभिना  आज।।

रहीं भिनभिना आज,तितलियों की है हलचल।

गूँज  रहे   अलि  वृंद, विरहिणी  होती   बेकल।।

'शुभम्'  सुघर  ऋतुराज, करे अवनी पर   दौरे।

महक  उठे   कचनार,  आम  फिर से हैं   बौरे।।


                         -4-

फूले   पाटल  बाग  में,  आया   है ऋतुराज।

महक   रहे  गेंदा  यहाँ,  धरे  धरा नव  साज।।

धरे  धरा   नव  साज,  मटर  लहराती   जाए।

नाच     रहे    हैं  खेत,   चना    गेहूँ मुस्काए।।

'शुभम्' अनौखा   देश,  उछलकर अंबर छूले।

मेघ   गए    परदेश,   बाग   में पाटल   फूले।।


                         -5-

जाना  मत  परदेश  में,  आया  प्रिय ऋतुराज।

बिना   तुम्हारे  गेह में, रह न सकूँ कल आज।।

रह न  सकूँ  कल  आज, रात में काम  सताए।

कहूँ   न मन  की  बात, कहूँ  तो  उर  शरमाए।।

'शुभम्'   होलिका   पर्व, रंग का मत तरसाना।

खेलूँगी    तव   संग,  सजन  तज के मत जाना।।

शुभमस्तु !


30.01.2025●9.45प०मा०

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