शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

मुझको न विलक्षण कुछ लगता [ नवगीत ]

 031/2025

 

© शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मुझको न विलक्षण कुछ लगता

जब देखा,  हैं   असमान  सभी।


जब काम बँटे  थे  जीवों   को

करनी का ही परिणाम मिला,

जैसा था जिसका काम दिखा

वैसा ही उसका सुमन खिला,

सब कीट  - पतंगे  भले लगे,

क्यों घृणा हृदय में जगे कभी।


नर की देही में श्वान मिले

खग शूकर बैल गाय कीड़े,

चाँदी का चम्मच लिए हुए

कोई - कोई दो कर मीड़े,

जीते जी मानव के तन में

कुछ मिले शशक या शेर अभी।


क्यों फल के कारण रोता है

पकती कर्मों की फसल यहाँ,

जो बीज आम का बोता है

बस आम्र पेड़ ही फले वहाँ,

काँटे बबूल में  लगते हैं

जिसको चुभते है विकल तभी।


शुभमस्तु !


22.01.2025● 9.30प०मा०

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