सोमवार, 20 जनवरी 2025

देती है फिर भी [गीतिका]

 020/2025


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


देती    है   फिर   भी   है   नदिया।

करती है फिर भी न  कुछ  किया।।


कितने   मनुज   जगत  में     ऐसे,

फटे  वसन    के   भरते   बखिया।


करती   है   पति- कुल  की  सेवा,

फिर भी   वह कहलाए  द्वितिया।


बँधी      द्वार    पर    जैसे    कोई,

सींग पूँछ    बिन  कोई    बछिया।


कैकेयी      माँ     की   दृढ़  आज्ञा,

राम    संग  वनवासी     सु-सिया।


मानव  हैं       मानवता    भी    हो,

द्रवीभूत   हो    सबका    सु-हिया।


'शुभम्'    वही  है   जीवन   सच्चा,

मानव  वही    परहित    में  जिया।


शुभमस्तु !


20.01.2025●8.45आ०मा०

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