027/2025
©व्यंग्यकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आपको कुंभ - स्नान के लिए अवश्य जाना चाहिए। आप तो जानते ही हैं कि आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है।यह कहावत कोई यों ही तो नहीं बन गई।जब आपने और आप जैसे ही बहुत सारे गुणी जनों ने आवश्यकता के बीज बोए हैं,तभी तो ये कुंभ का पेड़ बढ़कर आज तक सबके सामने प्रकट हुआ है।यह भी आप सब अच्छी तरह जानते हैं कि यह प्रत्येक बारह वर्षों के बाद आता है।कुंभ है तो उसको भरना भी जरूरी है,जब तक वह भरे नहीं ,तब तक उसे आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। माना यह गया कि बारह वर्षों में तो भर ही जाता होगा ,इसलिए कुंभ में स्नान की परंपरा प्रारंभ की गई।सम्पूर्ण रूप से 144 वर्षों में भरा हुआ माना गया ,इसलिए इसे महाकुंभ की संज्ञा से अभिहित किया गया।
जब बीज बोएंगे ,तो वह उगेगा।और एक दिन पूरा वृक्ष बनकर प्रकट हो लेगा। आज वही सुअवसर आया है कि बारह वर्ष भी हो गए और 144 वर्ष भी पूर्ण हो लिए।इसलिए आप सभी 'महागुणियों' का यह कर्तव्य बनता है कि आप प्रयागराज जाएँ, और त्रिवेणी के संगम में गोते लगाएँ। अपने समस्त पाप ताप को नसाएँ और लौटकर घर पर पधार जाएँ और पुनः उन्हीं कर्मों के क्रम को पूरा करने में जी जान से जुट जाएँ ;जिन्हें अब तक करते चले आ रहे थे और मेरे रोकने से भी आप मानने वाले तो हैं नहीं। आप वही करेंगे जो करते चले आ रहे हैं।जैसे जिसे दूध में पानी और धनिए में लीद मिलानी है ,तो मिलाएगा ही।किसी को हल्दी में रंग और रसायन,मिर्चों में रंग, काली मिर्च में पपीते के बीज,देशी घी में चर्बी,सरसों के तेल में पाम ऑयल, दवाओं में खड़िया,मावा में मैदा,दालों में कंकड़,गेहूँ के आटे में अन्य सस्ते सफेद पाउडर,बेसन में कोई पीला पदार्थ मिलाना है ,तो मिलाएगा ही और कभी छः साल बाद अर्द्ध कुंभ में,कभी मावस पूनों, नहायेगा ही।और अपना पाप परिष्कार कर गंगा में बहाएगा ही।चोर चोरी बन्द नहीं करता, डकैत डकैती में तन मन से संलग्न रहता है। रिश्वती रिश्वत लेना बंद नहीं करता।नेता जनता का शोषण करना नहीं छोड़ता। काम बुभुक्षु व्यभिचार नहीं रोक सकता। फिर कुंभ को ही क्या अवश्यकता है कि वह पुनः आगमन न करे।उसे तो कभी छः साला और कभी बारह साला होना ही है।
कुंभ - स्नान के पर्व को आप इतना सामान्य न समझें। यह विशेष ही है।विशेष जन के लिए ही है।आप जैसे 'महागुणी' भी तो इस हेतु वी. आई. पी. हैं। आप में से बहुत सारे वी.वी.आई.पी.भी हो सकते हैं।इस देश में वीआइपियों के लिए रिश्वत देकर दर्शन करा देने की भी व्यवस्था की जाती है। न मानो तो बड़े -बड़े मंदिरों में जाकर देख लो कि वहाँ कैसे नेताओं ,सुंदर और हसीन अभिनेत्रियों , अभिनेताओं,खिलाड़ियों,अधिकारियों को वीआईपी या वीवीआइपी के दर्जे में भगवान को चोरी चोरी दिखा दिये जाने का आचार चलता है। न ! न! न! इसे आप भ्रष्टाचार मत कहिए ।यह तो वीआइपियों का विशेष सम्मान है। उन्हें चौबीस घण्टे से कम मिले हैं,इसलिए उन्हें अपना काम निबटाने में ज्यादा जल्दी रहती है। आम आदमी की क्या है !उसे तो चुसना ही है।वह दो चार दिन लाइन में खड़ा रहेगा तो क्या फर्क पड़ता है।हाँ,इस देश में वीआइपियों का विशेष ध्यान रखा जाता है ,तभी तो नेताजी के आगमन पर आम जन को मरने खटने के लिए छोड़ दिया जाता है। आम तो पैदा ही इसलिए हुआ है कि उसे चूसा जाए। समर्थ वीआईपी चूस रहे हैं। उन्हें पूछता ही कौन है ? आम आदमी का समय निर्मूल्य है तो वीआइपियों का अमूल्य ,बहुमूल्य!
'कुंभ' शब्द का अर्थ मेरे अपने अनुसार घड़ा होता है।इससे अधिक सोचने विचारने की इस अकिंचन की औकात ही कहाँ है! घड़ा अर्थात कुंभ भरा और भारी भरकम भीड़ के रूप में फट पड़ा।बारह क्या 144 के बाद आया है; इसलिए 'महाबड़ा' ! इसलिए हर 'महागुणी' स्नानार्थ अड़ा पड़ा।क्योंकि उसे भी तो खाली करना अपना -अपना घड़ा। अरे भाई और बहन जी अब आकर कर लेना ये मिलावट ,घिसावट,रिश्वत,किस्मत का काम। क्योंकि 45 दिन के बाद तो कहीं गङ्गा भी मैली न हो जाए। और आप अपने घड़े को लुढ़का भी न पाएँ।क्योंकि जिस गति से वहाँ घड़े खाली किए जा रहे हैं,उससे यह नहीं लगता कि एक भी 'महागुणी' अब धरती पर बचेगा भी ! नहाना हो तो नहा लो,बड़े से बड़े पापों को बहा लो।बड़ी से बड़ी मैली कुचैली दीवार को ढहा लो। पर मन में भ्रम मत पालो कि कुंभमें हल्के हो लेते तो नवीनीकरण हो लेता।अब अगले बारह वर्ष किसने देखे हैं ,कितनों को दिखने हैं।ये भारी घड़ा लेकर विदा होना तो ठीक नहीं है।इसलिए यहाँ का मैल यहीं झाड़ो तो अच्छा है। इससे बढ़िया सुअवसर भला कब आएगा? आपकी आवश्यकता ने आपके द्वारे कुंभ ला खड़ा किया है तो बहती गंगा में हाथ क्यों नहीं धो लेते! हर्रा लगे न फिटकरी रँग चोखा आए! इसलिए जल्दी से कार्यक्रम तय करें और कुंभ नहाएँ।
मैंने पहले ही कहा है कि इतना भारी भरकम 'घड़ा' यहाँ से ऊपर ले जाने में आपको बहुत कष्ट होगा। मैंने तो आपके भले के लिए ही कुंभ - स्नान का अकुम्भ सुझाव दिया है। अब यह आपकी इच्छा है कि आप उसे मानें या ठुकरायें।एक कुंभ आपके धड़ पर है और एक कुंभ उधर है। बड़े में छोटे को खाली भर करना है। और हल्का होकर तरना है। अब ये बात अलग है कि उसे आपको क्या पुनः भरना है ?अथवा खाली करके यों ही जीना - मरना है।आपकी आवश्यकता ने एक कुंभ जन्माया है तो वह प्रयागराज में बारह सालों में पुनः आया है।उस कुंभ की जननी भी तो आप ही हैं। कुंभ आपका ही अविष्कार है। इसलिए इसमें कर लीजिए किए गए 'कर्मों' का परिष्कार।अगर चूक गए तो दिल करेगा बार- बार धिक्कार।इसलिए चले जाइये प्रयागराज गङ्गा यमुना सरस्वती के द्वार।
शुभमस्तु !
21.01.2025●7.45प०मा०
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