007/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
वे दिन नहीं
लौट कर आते
जो बचपन में बीते।
सर्दी गर्मी
नहीं सताए
सावन भादों बरसे।
रहे प्रफुल्लित
बचपन खिलता
हरसे हरसे हरसे।।
हृदय लबालब
है खुशियों से
रहते कभी न रीते।
क्या होती है
निपट गरीबी
मन से सभी अमीर ।
हर हालत में
खुश ही रहना
गाते फाग कबीर।।
जो कुछ है
सब वर्तमान ही
सारी खुशियाँ जीते।
कपड़े मैले
फटे पुराने
चिंता करें न कोई।
मुख हो यदि
काला पीला तो
मस्ती रहे भिगोई।।
'शुभम्' याद
आता है बचपन
करते सब मनचीते।।
शुभमस्तु !
07.01.2025●6.00आ०मा०
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