021/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
ग्यारह बीता बारह आया।
भगवत ने तब कुंभ नहाया।।
जीवन का वह प्रथम कुंभ था,
माता ने जब पाठ पढ़ाया।
निकले थे दो अक्षर मुख से,
विज्ञों से वह काव्य कहाया।
छः -छः कुंभ नहाए जिसने,
'शुभम्' वही कविवर कहलाया।
ढाई दर्जन गङ्गा यमुना ,
सरस्वती का दीप जलाया।
कवि के बोल 'बोलते आँसू',
'लोकचरितमानस' भी गाया।
शोध ग्रंथ नागार्जुन जी का,
छपा और जग में दिखलाया।
'बुद्ध तपस्वी' महाकाव्य में,
चरित महान शुभम् सिर नाया।
एक - एक कर तीस हो गए,
नाम 'शुभम्' कौशल को भाया।
कहती है कवि जिसको दुनिया,
आज 'शुभम्' कविवर जग छाया।
लगा वर्ष पच्चीस 'शुभम्' ने,
बढ़ा तीस से ऊपर आया।।
शुभमस्तु !
20.01.2025● 1.00प०मा०
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