015/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
गुल्लीडंडा खेल के, दिन थे वे भी खूब।
मौज मजा मस्ती रही,नहीं कभी थी ऊब।।
नहीं कभी थी ऊब, पाँव भी बिलकुल नंगे।
किया न मन में दम्भ, खेलते मन से चंगे।।
'शुभम्' न किया फसाद,नहीं फोड़ा खग अंडा।
खेल खेल बस खेल, बसा था गुल्ली डंडा।।
-2-
गोली कंचा खेलना , था अपना प्रिय खेल।
कभी अठारह गोटियाँ, कभी चलाते रेल।।
कभी चलाते रेल,रेल छुक-छुक कर जाती।
कभी गली में खेल, गाँव में धूम मचाती।।
'शुभम्' कबड्डी गेंद, बिना क्या चलती टोली।
मिले ओट में धूप, खेलते कंचा गोली।।
-3-
झाँझी-टेसू खेल के, थे अपने नवरंग।
क्वार सुदी पड़वा सदा, करती दंगमदंग।।
करती दंगमदंग, साँझ होते ही जाते।
दिया जलाकर एक, संग टोली के गाते।।
'शुभम्' माँगते भीख, न रोटी सब्जी भाजी।
गेहूँ आटा अन्न , चवन्नी टेसू - झाँझी।।
-4-
आया सावन मास तो,छाया अलग उछाह।
पेड़ों पर झूले पड़े, जगी अलग ही चाह।।
जगी अलग ही चाह, झूलना हमको भाता।
झोंटा देता एक, एक को एक झुलाता।।
'शुभम्' बहन भी झूल, गीत सावन का गाया।
पींग बढ़ाती एक, मनोहर सावन आया।।
-5-
आए क्यों अब लौटकर, बीत गया जो काल।
अलग मौज मस्ती मजा, मनोहारिणी ताल।।
मनोहारिणी ताल, नए नित खेल निराले।
खेल रहे हम नित्य, छबीले हम मतवाले।।
'शुभम्' मल्हारें गीत, गेंद कंचा तब छाए।
मोबाइल की मार, नहीं वे फिर से आए।।
शुभमस्तु !
15.01.2025●3.30प०मा०
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