सोमवार, 20 जनवरी 2025

आशीष माँ शारदे का [आभार सवैया]

 003/2025

         

छंद विधान:

1.आभार सवैया चार चरण का एक वर्णिक छंद है।

2.इसमें आठ तगण (221×8) के विधान का प्रयोग होता है।

3 इसके चारों चरण समतुकांत होते हैं।


                         -1-

आशीष माँ शारदे का मिला है,

               भला मैं करूँ मैं हरूँ दुःख साभार।

संसार में नाम सालों युगों में,

              रहे काव्य का नाम साभार साकार।।

कोई न ऐसा हो दुःख भारी,

            किसी को कभी नाँहिं कोई न लाचार।।

गंगा सु-धारा बहे नित्य प्यारी,

           सु सींचे सुधा -सी शुभाकार  आगार।।


                         -2-

आभार माता -पिता का सदा हो,

              मिलें सात जन्मों धरूँ रूप साकार।

भारी किए पुण्य ऐसे सु देही,

              नहीं जानता क्या भरा यूप प्राकार।।

आकार देते करें कर्म जो -जो,

             बिना बीज बोए न पौधा सु आकार।

बोए धतूरा धतूरा फलेगा,

              जो बोता मधू आम मीठा फलाभार।।


                          -3-

गंगा नहा ले घटे पाप -बोझा,

                मिले शुद्धता का तुझे पुण्य साकार।

आगे मिलेगी तुझे योनि ऐसी,

                  न होगा बड़ा भार होगा न लाचार।।

राधा मिलेंगीं मिलें संग कान्हा,

                 सखा श्याम जी के जु देंगे समाचार।

धारा वही हो नदी भानु बेटी,

                     बहेगी गहेगी सिखाए सदाचार।।


                          -4-

ज्ञानी न ध्यानी न मानी घनेरा,

                 कहूँ शब्द का एक सादा सदाचार।

पानी न गंगा न शोभी सवेरा,

                 रहूँ गाँव में मैं जु छोटा भयाभार।।

मानूँ न मैं हूँ बड़ा संत साधू,

               रहा खोजता मैं सु शब्दा नयाकार।

खोजी सु भोगी न योगी नवेला,

              निशा या दिनों का न पाता समाचार।।


                         -5-

भूलें हुईं जो क्षमा माँ करें जी,

                दिया ज्ञान का हार मेरे सुखाकार।

कोई मिला मेरु माला जु मोती,

               किया है वही जो कराया  तदाधार।।

मेरा न कोई न आया भरूँ जो,

                 तुम्हारा तुम्हें सौंपता हूँ  तदाकार।

माते तुम्हारी कृपा चाहता हूँ,

                 कृपा चाहता हूँ कृपा की कृपागार।।


शुभमस्तु !


02.01.2025●7.30आ०मा०

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