003/2025
छंद विधान:
1.आभार सवैया चार चरण का एक वर्णिक छंद है।
2.इसमें आठ तगण (221×8) के विधान का प्रयोग होता है।
3 इसके चारों चरण समतुकांत होते हैं।
-1-
आशीष माँ शारदे का मिला है,
भला मैं करूँ मैं हरूँ दुःख साभार।
संसार में नाम सालों युगों में,
रहे काव्य का नाम साभार साकार।।
कोई न ऐसा हो दुःख भारी,
किसी को कभी नाँहिं कोई न लाचार।।
गंगा सु-धारा बहे नित्य प्यारी,
सु सींचे सुधा -सी शुभाकार आगार।।
-2-
आभार माता -पिता का सदा हो,
मिलें सात जन्मों धरूँ रूप साकार।
भारी किए पुण्य ऐसे सु देही,
नहीं जानता क्या भरा यूप प्राकार।।
आकार देते करें कर्म जो -जो,
बिना बीज बोए न पौधा सु आकार।
बोए धतूरा धतूरा फलेगा,
जो बोता मधू आम मीठा फलाभार।।
-3-
गंगा नहा ले घटे पाप -बोझा,
मिले शुद्धता का तुझे पुण्य साकार।
आगे मिलेगी तुझे योनि ऐसी,
न होगा बड़ा भार होगा न लाचार।।
राधा मिलेंगीं मिलें संग कान्हा,
सखा श्याम जी के जु देंगे समाचार।
धारा वही हो नदी भानु बेटी,
बहेगी गहेगी सिखाए सदाचार।।
-4-
ज्ञानी न ध्यानी न मानी घनेरा,
कहूँ शब्द का एक सादा सदाचार।
पानी न गंगा न शोभी सवेरा,
रहूँ गाँव में मैं जु छोटा भयाभार।।
मानूँ न मैं हूँ बड़ा संत साधू,
रहा खोजता मैं सु शब्दा नयाकार।
खोजी सु भोगी न योगी नवेला,
निशा या दिनों का न पाता समाचार।।
-5-
भूलें हुईं जो क्षमा माँ करें जी,
दिया ज्ञान का हार मेरे सुखाकार।
कोई मिला मेरु माला जु मोती,
किया है वही जो कराया तदाधार।।
मेरा न कोई न आया भरूँ जो,
तुम्हारा तुम्हें सौंपता हूँ तदाकार।
माते तुम्हारी कृपा चाहता हूँ,
कृपा चाहता हूँ कृपा की कृपागार।।
शुभमस्तु !
02.01.2025●7.30आ०मा०
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