सोमवार, 20 जनवरी 2025

अच्छी लगे रजाई [बाल गीतिका]

 011/2025

         


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अति   की  अच्छी लगे   रजाई।

ऊपर    लेटी    सजे      रजाई।।


शीत   सताए     पूस  - माघ  में,

देती   है     सब     मजे   रजाई।


कौन      चाहता    आना   बाहर,

कैसे       कोई       तजे    रजाई।


सहती     ठंड    तुषार      हवाएँ,

राम   -  राम      ही   जपे  रजाई।


जो       लेटा      बाँहों   में   भीतर,

इधर  - उधर  से      दबे      रजाई।


नहीं      बोझ     भी  लगता  भारी,

जब      ऊपर    से     लदे  रजाई।


कम्बल     में   तो  कम बल होता,

भारी  -  भरकम   फबे      रजाई।


शुभमस्तु !


12.01.2025● 11.00प०मा०

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