011/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अति की अच्छी लगे रजाई।
ऊपर लेटी सजे रजाई।।
शीत सताए पूस - माघ में,
देती है सब मजे रजाई।
कौन चाहता आना बाहर,
कैसे कोई तजे रजाई।
सहती ठंड तुषार हवाएँ,
राम - राम ही जपे रजाई।
जो लेटा बाँहों में भीतर,
इधर - उधर से दबे रजाई।
नहीं बोझ भी लगता भारी,
जब ऊपर से लदे रजाई।
कम्बल में तो कम बल होता,
भारी - भरकम फबे रजाई।
शुभमस्तु !
12.01.2025● 11.00प०मा०
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