सोमवार, 20 जनवरी 2025

सर्वे भवन्तु सुखिनः [ अतुकांतिका ]

 008/2025

          

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आप चाहते हैं 

कि हम खुश रहें,

ठीक है,

किंतु क्या खुश रह लेना

इतना सहज है?

क्या यह सब सु-संभव है?

शायद नहीं।


नहीं है संभव

और सहज खुश रह पाना

इसलिए आशीर्वाद मिलता है

'खुश रहो'।


रहना तो सभी चाहते हैं

पर दुष्कर है यह सब,

कुछ लोग तो 

दूसरों को दुखी देखने में ही

परमानन्द में हैं,

इसी में खुश हैं,

वे क्यों चाहेंगे कि

कोई खुश रहे !

किसी का दुख ही

उनके सुख और खुशी का

पर्याय है।


संसार दुःखमय है,

इसीलिए 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' है,

संसार रोगग्रस्त है,

इसीलिए 'सर्वे संतु निरामयाः' भी है,

लोग दूसरों का

 बुरा देखने के इच्छुक हैं,

इसीलिए 'सर्वे भद्राणि पश्यन्तु' है,

यह संसार दुःख स्वरूप है,

इसलिए किसी को 

दुःख न मिलने की

कामना की गई है।


हम शुभकामना मात्र 

कर सकते हैं,

शुभ होना या न होना

नियति और कर्म पर

आधारित है,

इसीलिए शुभाकांक्षी को

शुभ ही करना अपेक्षित है,

तभी उसे सदा शुभ मिलेगा।

दूसरों का शुभ चाहेंगे

तो आपका 

स्वतः शुभ ही होगा।


शुभमस्तु !


09.01.2025●9.15प०मा०

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