026/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
श्वान नहाया
गंगा यमुना
रहा श्वान का श्वान।
दूध गाय का
बेचा जी भर
मिला -मिला सद नीर,
माथे तिलक
लगाए पहुँचा
भक्त त्रिवेणी तीर,
राम राम का
जाप कर रहा
आया कुंभ - नहान।
हल्दी में रँग
धनिया में भी
मिला रहा था लीद,
नाप तोल
कम ही करता है
खुली न अब तक नींद,
वही 'भक्त' क्यों
राजदुलारा
गाता गंगा -गान।
पिया खून
जनता का जी भर
आया तीर्थ प्रयाग,
गंगाजी बोली
उस नर से
खुले हमारे भाग,
तेरे जैसे
नर-पिशाच ने
किया गंग जल-पान।
करे पाप तू
मैं धो डालूँ
यही शेष मम काम,
पाप नहीं
धुलते गङ्गा में
भज ले पापी राम,
इसीलिए तो
कहते कविजन
मेरा देश महान।
शुभमस्तु !
21.01.2025● 4.15प०मा०
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