बुधवार, 22 जनवरी 2025

रहा श्वान का श्वान! [ नवगीत ]

 026/2025

       


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


श्वान नहाया

गंगा यमुना 

रहा श्वान का श्वान।


दूध गाय का 

बेचा जी भर

मिला -मिला सद नीर,

माथे तिलक

लगाए पहुँचा

भक्त त्रिवेणी तीर,

राम राम का

जाप कर रहा

आया कुंभ - नहान।


हल्दी में रँग

धनिया में भी

मिला रहा था लीद,

नाप तोल 

कम ही करता है

खुली न अब तक नींद,

वही 'भक्त' क्यों

राजदुलारा

गाता गंगा -गान।


पिया खून

जनता का जी भर 

आया तीर्थ प्रयाग,

गंगाजी बोली

उस नर से

खुले हमारे भाग,

तेरे जैसे

 नर-पिशाच ने

किया गंग जल-पान।


करे पाप तू

मैं धो डालूँ

यही शेष मम काम,

पाप नहीं

धुलते गङ्गा में

भज ले पापी राम,

इसीलिए तो 

कहते कविजन

मेरा देश महान।


शुभमस्तु !


21.01.2025● 4.15प०मा०

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