सोमवार, 20 जनवरी 2025

मानव वही [सजल ]

 019/2025

              


समांत         :इया

पदांत          : अपदांत

मात्राभार     : 16.

मात्रा पतन  : शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


देती    है   फिर   भी   है   नदिया।

करती है फिर भी न  कुछ  किया।।


कितने   मनुज   जगत  में     ऐसे।

फटे  वसन    के   भरते   बखिया।।


करती   है   पति- कुल  की  सेवा।

फिर भी   वह कहलाए  द्वितिया।।


बँधी      द्वार    पर    जैसे    कोई।

सींग पूँछ    बिन  कोई    बछिया।।


कैकेयी      माँ     की   दृढ़  आज्ञा।

राम    संग  वनवासी     सु-सिया।।


मानव  हैं        मानवता    भी   हो।

द्रवीभूत   हो    सबका    सु-हिया।।


'शुभम्'    वही  है   जीवन   सच्चा।

मानव  वही    परहित    में  जिया।।


शुभमस्तु !


20.01.2025●8.45आ०मा०

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