019/2025
समांत :इया
पदांत : अपदांत
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन : शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
देती है फिर भी है नदिया।
करती है फिर भी न कुछ किया।।
कितने मनुज जगत में ऐसे।
फटे वसन के भरते बखिया।।
करती है पति- कुल की सेवा।
फिर भी वह कहलाए द्वितिया।।
बँधी द्वार पर जैसे कोई।
सींग पूँछ बिन कोई बछिया।।
कैकेयी माँ की दृढ़ आज्ञा।
राम संग वनवासी सु-सिया।।
मानव हैं मानवता भी हो।
द्रवीभूत हो सबका सु-हिया।।
'शुभम्' वही है जीवन सच्चा।
मानव वही परहित में जिया।।
शुभमस्तु !
20.01.2025●8.45आ०मा०
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