050/2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
संततियाँ हम सभी तुम्हारी
तुमसे ही पालित पोषित हैं।
दंशक पिता दंशकी माता
रक्त तुम्हारा ही हम पीते
बहता है हर नस-नस में
उसी रक्त से जीवन जीते
कहती है ये दुनिया सारी
हम शोषक मानव शोषित हैं।
सही अर्थ में फसल हमारी
नर - नारी का रक्त लाल है
चुपके से छिपकर आ पीते
खुजलाते तुम खूब खाल है
सब गुणसूत्र तुम्हारे तन में
पहले से ही सब घोषित हैं।
नफरत इतनी करो न हमसे
जीवन भर का साथ हमारा
'ऑल आउट' से हमें न मारो
नहीं जहर का दे फुव्वारा
नाली - नाले से मत तारो
'शुभम्' दंशकी - दंशक सारे
हर नर - नारी से रोषित हैं।
शुभमस्तु !
28.01.2025●8.30प०मा०
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