010/2025
शब्दकार©
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मानव इतना आज तना है।
अहंकार का धूम घना है।।
समझे नहीं किसी को अपना,
तमस पंक में निपट सना है।
धन - संपति के रिश्ते हैं सब,
मानवता के लिए मना है।
बालाओं को पति पसंद वह,
पैसों से जो बना - ठना है।
चरित घास घूरे पर चरता,
भ्रष्ट आचरण का जपना है।
नर नहला तो दहला नारी
संस्कृतियों को यों मिटना है।
'शुभम्' गर्त में मानव प्रति क्षण,
भाड़ न फोड़े एक चना है।
शुभमस्तु !
12.01.2025●10.00प०मा०
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