सोमवार, 20 जनवरी 2025

मानव इतना आज तना है [ गीतिका ]

 010/2025

     

शब्दकार© 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मानव     इतना    आज   तना   है।

अहंकार    का     धूम     घना   है।।


समझे  नहीं   किसी   को   अपना,

तमस   पंक  में    निपट  सना   है।


धन - संपति  के  रिश्ते    हैं    सब,

मानवता   के     लिए    मना    है।


बालाओं  को    पति    पसंद   वह,

पैसों     से    जो    बना -  ठना है।


चरित  घास    घूरे     पर     चरता,

भ्रष्ट   आचरण   का   जपना    है।


नर    नहला   तो     दहला   नारी

संस्कृतियों  को    यों   मिटना   है।


'शुभम्'  गर्त  में  मानव  प्रति क्षण,

भाड़    न    फोड़े   एक  चना   है।


शुभमस्तु !


12.01.2025●10.00प०मा०

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