034/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सरिता तट से दूर सुनाई पड़े
लहर कलनाद।
मंद मधुर मृदु शब्दों में भी
होते हैं नव प्राण
मंत्र वही कानों में बनते
मानवता का त्राण
हाहाकारों की हलचल से
होता सदा विवाद।
परिश्रान्त को शांति प्रदाता
सरिता की हर बूँद
एक - एक को गोते देती
अपनी आँखें मूँद
नहीं सोच हिंदू मुस्लिम की
करती प्रिय संवाद।
भेदभाव केवल मानव की
होती है पहचान
कुदरत ही साँची है जन से
सबका ही है मान
इंसानों के पोखर मन में
बहती रहती गाद।
शुभमस्तु !
23.01.2025●12.00मध्याह्न
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