046/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
समय की
कुछ चाल ऐसी
बदलता ही है।
खँडहरों में
बदल जाते
भवन भी सुंदर,
कार पर भी
घास उगती
बदलता मंजर,
जो कभी
अच्छा-भला हो
बिगड़ता भी है।
समय का है
चक्र ऐसा
कौन जन जाने,
दंभ में
ऊँचा उछलता
कुछ नहीं माने,
वक्त की
करवट अनौखी
उबलता भी है।
पहचानना
अनिवार्य सबको
जो नहीं जाना,
फिर पड़े
अनिवार्य उसको
शीघ्र पछताना,
बिगड़ जाए
जो समय तो
सँभलता भी है।
शुभमस्तु !
28.01.2025●3.00आ०मा०
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