016/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
महाकुंभ का
महापर्व है
तीर्थराज प्रयाग,
शमन करें
त्रिपथगा जल में
तन-मन की हर आग।
धर्म सनातन
मानवता का
पावनतम पर्याय,
एक सौ चवालीस
वर्ष बाद ये
खुला कुंभ का द्वार।
तन के घट में
निजी कुंभ को
पहचानें,
इड़ा पिंगला
और सुषुम्ना की
त्रिपथगा को जानें।
श्वास-श्वास में
गंगा-यमुना
बहती सुषुमन धार,
क्यों न करे स्नान!
मानव मूढ़ महान,
नित्य कुंभ कर पान।
मन हो यदि चंगा
बने कठौती गंगा,
काशी या दरभंगा
मिले कुंभ त्रय रंगा।
'शुभम्' बारहों मास
श्वास-श्वास प्रति श्वास
गंगा कुंभ नहान,
करे श्वास आदान-प्रदान,
सत्य सनातन का गुणगान।
शुभमस्तु !
16.01.2025●3.00प०मा०
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