049/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हमें आदमी पर
बड़ा प्यार आए।
आहार सबका
प्रभु ने बनाया
दंशन की खातिर
मानव है आया
प्रथम पाँव छू के
श्रवण गुनगुनाए।
हमें रक्त पीना
तभी मित्र जीना
दिखा आदमी जो
हो प्रशस्त सीना
चर्म छिद्र करके
सूची घुसाए।
यही कामना है
दुआ भी यही है
जिए आदमी
सौ-सौ वर्षों सही है
'शुभम्' स्वाद बदलें
शर्म क्यों सताए?
शुभमस्तु !
28.01.2025●4.45 प०मा०
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