सोमवार, 20 जनवरी 2025

सोना है इसलिए जागना भी है! [आलेख ]

 18/2025


 

 ©लेखक

 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 मैं रोज ही सोता हूँ। मैं रोज ही जागता हूँ।सोना है,इसलिए जागना भी है। जागना है ,इसलिए सोना भी है। मेरे लिए जागने और सोने का यह क्रम अनवरत है।जब से जन्म लिया है ,तब से निरंतर सोता और जागता रहा हूँ।मेरे सोने और जागने की यह अनिवार्यता यह दर्शाती है कि मैं जीवित हूँ।एक जीवंत जीव हूँ। एक जीवित मानव हूँ। इस सोने और जागने के बीच में भी बहुत कुछ है ,जो नित्य प्रति परिवर्तित होता है।जीवन की कितनी अनिवार्य क्रियाएँ इसी देह से सम्पन्न हो रही हैं।जो यह सिद्ध करती हैं कि मैं एक जीवित मनुष्य हूँ।यह बीच वाला काम आपको और अधिक खोलकर बताना युक्तिसंगत नहीं होगा ;क्योंकि आप सब भी वही सब करते हैं,जो मुझसे कहलवाना चाहते हैं। 

  सोने और जागने के मध्य एक और महत्त्वपूर्ण कार्य यह भी है कि किसी को जगाना।केवल अपने सोने और जागने से काम चलने वाला नहीं, मुझे ऐसा भी कुछ करना है ,करना भी चाहिए, जो मेरे सोने और जागने की सार्थकता बता सके।किसी सोते हुए को जगा देना कोई छोटा काम तो नहीं।कम से कम मेरी अपनी दृष्टि में तो कदापि नहीं।वह भी क्या सोना और जागना कि खाए,पिए,अर्जन, विसर्जन किए और अलविदा हो लिए।जियें तो ऐसे जिएं कि जो शेष जीने वाले हैं वे भी कहें कि क्या था उसका जीना ! मनुष्यों के बीच में जिंदा नगीना! 'ऐसी करनी कर चलो, तुम हँसो जग रोए ।' 

  सोने का अपना एक अलग आनन्द है और उधर जागने का तो और भी अलग आनंद है।जिसने सोने , जागने और मध्यवर्ती कर्मों का आनन्द जान लिया ,उसी का जीना सार्थक है।वरना एक सुअर श्वान या अन्य जीवों के जीवन में अंतर ही क्या रह जाएगा?प्रत्येक विहान एक नया विहान हो,वही जागना जागरण है और जो सोना शांति की अतल गहराइयों में गोते लगवाए ,वही सोने का स्वर्ण है। 

  अभी मैंने एक बात कही कि सोने और जागने के बीच में किसी को जगाना भी मेरा और हमारा काम है।इस काम को हम कितनी सफलतापूर्वक कर पाएँ ,ये अलग बात है।सोए हुए को जगाना अच्छा नहीं माना जाता। विशेषकर किसी का सोना अभी अधूरा हो। नींद कच्ची हो।यदि कुम्भकर्ण को कच्ची नींद से ही उठा दिया जाएगा, तो क्या कहर बरपेगा इसकी कल्पना भी नहीं की सकती।इसलिए अधूरी नींद की पहचान करके ही जगाना श्रेयस्कर रहता है।तरह -तरह के लोग अलग - अलग विधि विधानों से जगाते हैं।इसके लिए उपदेश, भाषण, काव्य लेखन, कविता पाठ, सहित्य सृजन,डांट-फटकार,गुरु मंत्र,विभिन्न प्रकार की पुस्तकों से स्वाध्याय,विद्यालय में शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य करना,धर्म,अध्यात्म आदि का आश्रय लिया जाता है। 

   हमें जगाने में हमारे संस्कार भी विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। संस्कार भी यथासमय जाग्रत होते हैं।कुछ लोग 9-10वर्ष की आयु में ही विरक्त जीवन स्वीकार कर योगी,सन्यासी, अघोरी या नागा बन जाते है। यह पूर्व जन्म के संस्कारों का जागरण ही है।इसीलिए हर व्यक्ति योगी ,सन्यासी,अघोरी या नागा नहीं बन जाता। यह भी पूर्व जन्म की अधूरी मंजिल को पाने का प्रयास है। प्रत्येक व्यक्ति इसीलिए कवि अथवा साहित्यकार नहीं बन जाता।सच्ची लगन और प्रयास अपना रंग अवश्य दिखलाते हैं, किंतु जन्मजात संस्कार की बात कुछ अलग ही होती है।जागना सोना तो रोज सबको है।यह दो अनिवार्य जैविक क्रियाएँ हैं।जिनके बिना जीवन की सूचारुता नहीं।मानव और मानवेतर प्राणियों के लिए ये दोनों अनिवार्य हैं।इसके अतिरिक्त मनुष्यों के हिस्से में कुछ और भी आया है।संभवतः मैं वैसा ही कोई मनुष्य हूँ ,इसलिए सोए हुओं को अपने ढंग से जगाने का कार्य कर लेता हूँ। 

  आप में से कुछ लोग सोचेंगे कि यह भी ऐसी कौन सी नई बात कह दी कि सोना और जागना।अपनी -अपनी सोच है,अपना-अपना मंथन है, चिंतन है।इस सोने जागने और उसके साथ में मुझे कुछ विशेष तत्त्व मिले कि सामान्य सोना और जागना मुझे विशेष लगा।जीव के जीवन के एक ही सिक्के के दो पहलू।वह भी कोई सामान्य पहलू नहीं, विशेष पहलू।जिनमें विशेष रस है।विशेष आनंद है। जहाँ आनंद है ,वहीं जीवन भी है।आप भी उस आनंद का रसास्वादन करें और अपने ऊपर प्रभावी करके उनके दोलनों में झूलें। अनन्त आकाश की बुलंद ऊंचाइयां छू लें। आप पाएँगे कि आप ने कुछ नया पाया है।वरना व्यर्थ ही सोती जागती आपकी काया है। सर्वत्र परम आनंद की छाया है। 


 शुभमस्तु ! 


 19.01.2025●10.30प०मा०


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