054/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
लेना नहीं चाहता कोई भी
दोष अपने सिर
किसी तरह अपनी जान
जो छुड़ानी है!
प्रायः हर आम और खास की
प्रकृति का अंग है ये।
दूसरों के सिर पर
मढ़ देना दोष
सारी मानव जाति की
यही तो कहानी है।
समाधान हो जाए
बहुत सी समस्याओं का
यदि स्वीकार कर ले दोष
न कहीं झगड़ा न विवाद
न परस्पर दिखलाएँ रोष।
पर कहाँ
कानून का डंडा
भला फिर किस
काम आना है?
साक्षी सुबूत जुटाने हैं
खुला हुआ
जेलखाना है!
ये अदालतें
ये जज ये वकील
ये पुलिस ये कारागार
करते हैं दोषियों का
अच्छा खासा उपचार।
फिर वही
ढाक के तीन पात
कानून की शह
और अपराधी की मात।
परंपरा जो है
चली आ रही है
झूठ का साथी ये मानव
लातों के भूत
बात से
मानते ही कब हैं?
शुभमस्तु !
30.01.2025● 7.15प०मा०
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