048/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मच्छरों के जीमने को
आदमी पैदा किया।
गजबजाती नालियाँ हैं
आलू टमाटर भी सड़े
भिनभिनाते घर छतों पर
रक्त के प्यासे अड़े
होता नहीं यदि आदमी तो
जलता नहीं उनका दिया।
भैंस की है खाल मोटी
रक्त हम कैसे पिएं
श्वान सूकर के सहारे
हम भला कैसे जिएं
और कुछ खाते नहीं हम
प्रण यही हमने लिया।
है दुआ अपनी हृदय से
आदमी लंबा जिए
अनुकूल हो मौसम हमारे
दंशकों के हित के लिए
एक नन्हा छिद्र काफी
छोड़ते बिन ही सिया।
शुभमस्तु !
28.01.2025●4.15प०मा०
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