004/2025
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
तारीखें बदलती हैं
महीने बदलते हैं
वर्ष भी बदल जाते हैं
परंतु आदमी
कब कितना बदला?
यों तो परिवर्तन
प्रकृति का नियम है,
पर लगता है
सब वैसा का वैसा ही,
जैसा कल था
वैसा ही आज भी है।
परिवर्तन की गति है
मंद ही इतनी कि
शनैः - शनैः
सब कुछ बदल रहा है,
कुछ भी जताए
बताए बिना,
ये तो आदमी ही है
जो प्रदर्शन के बिना
दो कदम न चले!
परिवर्तन में
नित्य नवीनता है
सूर्योदय- सूर्यास्त की तरह
पर अवसर ही किसे है
जो यह अनुभव भी करे।
आओ हम सब भी
परिवर्तन की
सूक्ष्मता निहारें,
उसके आनंद में
निमग्न हो जाएँ,
यही एक विवेकशील का
यथार्थ धर्म है।
शुभमस्तु !
03.01.2024● 4.30आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें