519/2023
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● © शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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समझें खेत देश को नेता।
फसल काट निज घर भर लेता।।
पिछड़ी या गरीब हो जनता।
काम वहीं नेता का बनता।।
जितनी बाड़ लगाते भारी।
खेत न बचता फसल न सारी।।
घुसा खेत में नेता खाता।
आश्वासन दे- दे ललचाता।।
जब चुनाव की आती बारी।
आश्वासन की दौड़ें लारी।।
जाकर खेत रेवड़ी बाँटे।
वही बाद में मारे चाँटे।।
बँटती सुरा खेत में जाता।
नोटों की गड्डी बँटवाता।।
भोला मतदाता लुट जाए।
नेता की बातों में आए।।
माली बन कर खेत रखाएँ ।
मीठे बनकर उन्हें रिझाएँ।।
भाषण से क्या पकती खेती?
उड़ती है गलियों में रेती।।
सभी खेत के मालिक बनना।
एक नहीं नेता की सुनना।।
तभी खेत अपना यह होगा।
वरन लुटेगा तन से चोगा।।
'शुभम्' पढ़ाएँ संतति अपनी।
खेत और खेती हो जितनी।।
स्वावलब ही एक सहारा।
प्रगति मिले शिक्षा के द्वारा।।
●शुभमस्तु !
04.12.2023●9.00आ०मा०
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