सोमवार, 14 अगस्त 2023

भारत ● [ चौपाई ]

 355/2023

             

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●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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मेरा   भारत   जग  में  न्यारा।

बहे  जहाँ  सुरसरि की धारा।।

गीता  के    संदेश    सुपावन।

हर मानव के हित में भावन।।


माधव , गर्मी,  पावस  आतीं।

शरद,शिशिर तब रँग बरसातीं।।

छठवीं   ऋतु  है   हेमंत सदा।

भारत वासी   भूलें   न कदा।।


उत्तर दिशि में हिमगिरि विशाल।

भारत का करता उच्च भाल।।

दक्षिण में सागर   पद पखार।

भारत माँ की   रक्षा -दिवार।।


तुलसी,   गंगा,  पीपल, गायें।

गायत्री ,  गीता     हैं    माएँ।।

भारत  में  पूजी    जाती    हैं।

उर  की कलिका मुस्काती हैं।।


 बहुभाषी    देश   हमारा  ये।

ब्रजभाषा  की    रसधारा ये।।

हैं खड़ी ,तमिल या गुजराती।

मैथिली, अवध की रसमाती।।


विजयादशमी शुभ दीवाली।

रक्षाबंधन, होली  -   ताली।।

भारत में उत्सव का  खुमार।

भरता जन-जन में नव बहार।।


कुछ   पाले   यहाँ  सपोले हैं।

कहने को   केवल   भोले हैं।।

कम नहीं  नेवले    यहाँ  बसे।

वे जान समझ लें कहाँ फँसे।।


हम शांति अहिंसा के पूजक।

मर्यादा     के   हैं    संपूरक।।

है  राम  कृष्ण की धरा यही।

संतों  से पावन   सदा  मही।।


बनकर भारत  के हम त्राता।

कर त्याग  समर्पण हे भ्राता।।

खंडित   होने   से   इसे बचा।

सब 'शुभम्' बचें इतिहास रचा।।


●शुभमस्तु !


14.08.2023◆11.00आ०मा०

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