543/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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हुई शरद की सुखद विदाई।
ऊपर आई गरम रजाई।।
रंग - बिरंगे कंबल आए।
बढ़ा शीत वे बड़े सुहाए।।
कंबल तो बस कम बल होता।
तान रजाई जन - जन सोता।।
बालक - बूढ़े सब नर- नारी।
ओढ़ रजाई सोते भारी।।
लाद रजाई सोता कोई।
लगती जैसे ऊनी लोई।।
है कपास की महिमा न्यारी।
बनती गरम रजाई प्यारी।।
धुन - धुन रुई तंतुवय भरता।
निर्मित एक रजाई करता।।
बालक लात चलाते भारी।
रुई तोड़ कर देते ख्वारी।।
रुई खोल में सिलवा लेते।
टूटे नहीं बचा यों देते।।
एक आवरण सुंदर प्यारा।
चढ़े रजाई पर भी न्यारा।।
गर्म चाय के संग रजाई।
लगती है सबको सुखदाई।।
मूँगफली जाड़े की मेवा।
तिल की गज़क करे अति सेवा।।
छोड़ रजाई बाहर जाएँ।
मन करता उसका सुख पाएँ।।
पर बाहर जाना ही पड़ता।
दैनिक काज राह में अड़ता।।
●शूभमस्तु !
18.12.2023●9.00आ०मा०
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