बुधवार, 9 अगस्त 2023

स्वतंत्रता ● [ दोहा ]

 346/2023

                

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●© शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सुख से मिली स्वतंत्रता, उन्हें नहीं  कुछ ज्ञात।

मनमानी करते सदा,हुआ चरित  का  पात।।

वीरों के  बलिदान से, आया सुदिन   महान।

स्वतंत्रता की वायु में, लेते साँस   सुजान।।


स्वतंत्रता के  मूल्य को, नहीं जानते   आज।

मात्र मतों से है मिला, समझ रहे  वे   ताज।।

सजी वेदियाँ त्याग की,होम दिए निज प्राण।

स्वतंत्रता की आग से, हुआ देश का त्राण।।


जो मन  आए खा रहे, जो मन आए  वेश।

स्वतंत्रता के भाव को,भूल गया   है देश।।

नेता   मनमानी   करे,जनता आगे    और।

स्वतंत्रता   दुर्भाव  की, बनी हुई   सिरमौर।।


'लिव इन' में उजड़े हुए,आज युवा  परिवार।

स्वतंत्रता - नाशी  बड़ा, हुआ नया   संसार।।

देश   बचाने के  लिए,त्यागा घर    परिवार।

वे  स्वतंत्रता  जानते, लौट न पाए     द्वार।।


स्वतंत्रता के नाम से,है अब लूट  -  खसोट।

नेता   अय्यासी    करे,  भरे तिजोरी   नोट।।

उच्छ्रंखलता  ही बनी,  स्वतंत्रता -  पर्याय।

राष्ट्र -चिह्न चिथड़े हुआ,बढ़ता नित अन्याय।।


एक साल से फहरते,छत पर झंडे    नित्य।

क्या यह सत्य स्वतंत्रता ,कैसा है  औचित्य।।


●शुभमस्तु !


09.08.2023◆5.00आ०मा०

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