352/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चोंच मिली तो पेट को,दाना दे भगवान।
तन- मन से श्रम मत करे,हे जड़मति इंसान।।
अपने हित मत कीजिए,हे नर कोई काम।
भरता है जो पेट को,देगा तुझे हराम।।
ये तन अपने हाथ से, होता साढ़े तीन।
परिजीवी बनकर रहे,मन को रखे मलीन।।
पैदा करने के लिए, संतति बार अनेक।
तुम मशीन बनकर जियो,साल-साल दर एक।।
चींटी भी देती सदा,अंडे लाख हजार।
वैसे ही संतति यहाँ, पैदा कर नर यार।।
पेट चोंच जो दे रहा,उपजाए वह अन्न।
मूरख जन खेती करे, तू क्यों रहे विपन्न।।
भीड़ बढ़ाने के लिए, रब ने दी ये देह।
नंगे - भूखे वे फिरें, भरा रहे हर गेह।।
दाता तो बस एक है,कर्ता तू कर काम।
तुझे दिया वह अन्न दे,खा- खा कर आराम।।
बालक जनने के लिए,नारी सफल मशीन।
लगा रहे तू रात -दिन,ज्यों दरिया में मीन।।
पेट भरे पट वसन भी,देता है रब खूब।
बढ़े, बढ़ा परिवार को,ज्यों जंगल में दूब।।
तेरी जैसी सोच जो,सबको दे भगवान।
चींटीं - सी रेंगें यहाँ,शेष न ढोर जहान।।
●शुभमस्तु !
13.08.2023◆5.00आ०मा०
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