सोमवार, 28 अगस्त 2023

घोंसले में चील के माँस क्यों? ● [ गीतिका ]

 381/2023

 

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●©शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कोयलों  के  वेश में अब काग मिलते।

आस्तीनों  में  छिपे  सब  नाग मिलते।।


जा रहा  है  आदमी  विपरीत ही अब,

ढूँढ़ने  पर    भी नहीं अनुराग मिलते।


घोंसले  में चील  के क्या माँस होता,

कंकरीटों  में  सजे   क्या   बाग मिलते!


आदमी  का   चेहरा   चिकना सुदर्शन,

 हर चरित के  हर वसन पर  दाग मिलते।


शक्ति  होती क्षीण जाती आज जन  की,

हर्ष   के शुभ  काम में अब  झाग मिलते।


शुद्ध   शाकाहार   के  गैरिक प्रचारक,

किंतु  उदराहार  में नित छाग मिलते।


चाँद  के सब भेद  अब खुलने लगे हैं,

झूठ  उपमाएँ   हुईं  तम-भाग मिलते।


खो   रहा   है   आदमी  नेहांश अपना,

रज्जुओं के नाम पर बस ताग मिलते।


यों 'शुभम्' विश्वास मत करना किसी का,

अब अमिय के रूप  में विष-पाग मिलते।


●शुभमस्तु !


28.08.2023◆6.30आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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