शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

अंतर ● [अतुकान्तिका]

 362/2023

          

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● ©शब्दकार

डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

गरीबों से अधिक

अमीरों को,

नेताओं, अधिकारियों को,

डॉक्टरों ,अभियंताओं को,

अभावों से अधिक

भरावों को,

सोने की चाहत है।


अच्छा है यह

कि खाया नहीं जाता

चमचमाता हुआ सोना,

वरना कितना अधिक

पड़ता इस आदमी को

जीवन में रोना,

फिर भी इस कनक की

चमक से 

पड़ता है उसे अपना

यथार्थ सुख खोना।


चाहत में सुख की

आजीवन ,

सोने की चौंध 

उसकी बुद्धि को

चुँधियाती है,

सोना का साथ

भुला देता है

उसे चैन से सोना।


सोने के सिंहासन पर

सब एक हैं,

कहीं कोई अंतर नहीं,

जैसे मरघट की

माटी में 

सबकी एक ही

दशा रही,

गोल -गोल रोटी से अधिक

यहाँ सदा सोने की

महत्ता जाती कही।


जिसने भी 'शुभम्'

ये अन्तर  समझा-जाना,

बना नहीं वह कभी

सोने का दीवाना,

उसने अपना

 सच्चा सुख

कहीं औऱ ही 

जाना।


● शुभमस्तु !


18.08.2023◆ 6.45 आ०मा० 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...