370/2023
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●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आज न अबला नारियाँ,तन- मन से बलवान।
रक्षा-बंधन बाँधकर, बनें न हीन अजान।।
जल-थल-नभ में छा गई,नारी चतुर सुधीर।
रक्षाबन्धन पर्व पर, थाम चली शमशीर।।
तन से हैं कोमल भले, साहस की वे खान।
रक्षाबंधन देश हित, करें समर्पित प्रान।।
वायुयान लेकर उड़े,चले धरा पर ट्रेन।
रक्षाबंधन पर्व पर, अबला क्यों वोमेन।।
डॉक्टर शिक्षक नारियाँ,पा सैनिक अधिकार।
रक्षाबंधन क्यों करें , प्रोफ़ेसर का भार।।
अपना ही हित साधने,नर कहता है दीन।
रक्षाबंधन है यही, नहीं नारियाँ हीन।।
स्वार्थवाद की कोख से, रक्षाबंधन जन्म।
नर ने नारी को दिया,नहीं उचित क्यों मन्म।।
प्रकृति भले ही भिन्न है,नारी की यह जान।
रक्षाबंधन स्वार्थ का, पर्व पुरुष का मान।।
नर ने नारी को किया, मन से कोमल कांत।
रक्षाबंधन दे उन्हें, किया नारि- उर भ्रांत।।
जाग गई हैं नारियाँ,ले राखी की डोर।
रक्षाबंधन क्यों करो, बना उसे कमजोर।।
कोमल रक्षा -सूत्र का,भ्रातृ भगिनि त्योहार।
रक्षाबंधन श्रावणी,शुचितामय उर - प्यार।।
● शुभमस्तु !
23.08.2023◆12.45 प०मा०
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