360/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चंदन और अबीर, माटी मेरे देश की।
जन्मे सूर ,कबीर, कालिदास, तुलसी यहाँ।।
करता गौरव - गान,लगा भाल अपने 'शुभम्'।
मेरी है पहचान , माटी मेरे देश की।।
देती गेहूँ, धान, माटी मेरे देश की।
कनक रजत की खान,पोषण देती रात -दिन।।
हुआ देश आजाद, वीरों के बलिदान से।
आती पल-पल याद, माटी मेरे देश की।।
अविरल भरे सुगंध, माटी मेरे देश की।
पास न आती धुंध, शुद्ध करे पर्यावरण।।
गेंदा, चंपा , फूल, जूही, पाटल, मोगरा।
वायु करे अनुकूल, माटी मेरे देश की।।
जिसमें लेकर जन्म,माटी मेरे देश की।
मिला कर्म से मन्म,धन्य भाग मेरा हुआ।।
मिटा पाप का भार,राम-कृष्ण अवतार से।
करती जन - उद्धार, माटी मेरे देश की।।
लिए तिरंगा हाथ, माटी मेरे देश की।
रक्षा हित निज पाथ, बलिदानी बढ़ते गए।।
बहुविध नव विज्ञान,जन्माती सहित्य को।
अभिकल्पना महान, माटी मेरे देश की।।
भरती रंग विचित्र, माटी मेरे देश की।
बन जाता है मित्र, आता परदेशी यहाँ।।
*मन्म = मान।
●शुभमस्तु !
17.08.2023◆12.45प०मा०
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