372/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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अब न तुम्हें हम
चाँद कहेंगे
देखा नियरे जाकर।
अब तक धोखा
खाया हमने
कहा चाँद-सा मुखड़ा।
जाकर ऊपर
चाँद निहारा
बढ़ा हृदय का दुखड़ा।।
नहीं लुनाई
गालों जैसी
भ्रम टूटा अब आकर।
पाए हमने
गहरे गड्ढे
दो सौ डिग्री नीचे।
शीतलता ही
मिली बर्फ की
अगणित बंद दरीचे।।
चिकनाहट की
राम कहानी
गिरी पड़ी झुठलाकर।
होती यदि तुम
मौन चाँद -सी
नहीं ब्याह कर पाते।
पत्थर की तुम
होती प्रतिमा
ठगे हुए रह जाते।।
कैसे करते
हम परिरंभण
रह जाते पछताकर।
विक्रम ने ये
हमें बताया
मामा लगे न वैसा।
कविता में जो
कविगण बोलें
नहीं लेश भर ऐसा।।
कवियों की ये
झूठ कल्पना
गिरी पड़ी गश खाकर।
बाबा दादी
झूठे हैं सब
चंदा मामा ऐसा?
पूनम का जो
चाँद निहारे
मन को खींचे कैसा!!
असली रंगत
रूप जानकर
चंदा हुआ उजागर।
●शुभमस्तु !
24.08.2023◆3.45आरोहणम मार्तण्डस्य।
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