सोमवार, 14 अगस्त 2023

होमो शेप की जिंस':बनाम भ्रष्टाचार का विरोध ● [ व्यंग्य ]

 356/2023


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 ©व्यंग्यकार ◆ 

डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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     जगती की प्रत्येक जिंस की कुछ ऐसी विशेषताएँ होती ही हैं,जिनसे मुँह मोड़कर वह बाहर नहीं जा सकता। 'होमो सेपियंस' अर्थात मनुष्य भी एक ऐसी ही जीती - जागती, दौड़ती-भागती ,चलती -फिरती ,मचलती,इठलती, उछलती,बिदकती, कूदती -फुदकती जिंस है।वह सारे संसार के समक्ष अपने जीवंत,वसंत ,हसंत,कुदन्त रूप में विद्यमान है।उसके रक्त की बूँद -बूँद में अनेक विशेषताओं की तरह एक विशेष तत्त्व भी गतिमान है,जिससे कैसे भी बचना या अपनी संतति को भी बचाना कठिन नहीं दुर्लभ काम है। किंतु विडम्बना की बात यही है कि जिसे वह स्वयं पसंद नहीं करता।नहीं करता तो नहीं करता ,किंतु बेचारा इतना ईमानदार है कि उसकी ईमानदारी को देख सुनकर उसे 'इनामदार' बनाने की तीव्र इच्छा होने लगती है। 

       जिज्ञासा यही होती है कि अंततः वह कौन - सा विशेष 'गुण' है, जिसे सोते ,जागते,सपना देखते, दौड़ते ,भागते, कभी भी वह विस्मृत नहीं कर पाता। 'भ्रष्टाचार' मनुष्य के रक्त की बूँद - बूँद के माइटोकोन्ड्रिया , प्रोटोप्लाज्म और सैल -वाल ही नहीं ; उसके न्यूक्लियस(केन्द्रक) में भी स्थाई रूप से जड़ें जमाए हुए है।अब क्या कीजिए ,जमाए हुए है तो जमाए हुए है ही।आप चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकते। कौन नहीं चाहता कि भ्रष्टाचार न हो, पर वह तो होकर ही रहने वाला है। होता ही है।

       एक बात यह भी है कि कोई अन्य मनुष्य या संस्था भ्रष्टाचार न करे, किन्तु जब स्वयं को अवसर मिलता है ,तो एक पल के लिए चूकना वह अपनी निहायत मूर्खता मानता है। अब आप ही बताएँ कि कोई ऐसा भी है ,जो जान - बूझकर मूर्ख बनना चाहेगा। किसी और के स्थान पर आप अपने को ही बैठाकर देख लीजिए। क्या आपको ऐसा 'सु' - अवसर प्राप्त हो जाए,तो क्या आप उसे लात मार देंगे?और दुत्कारते हुए कहेंगे , चल हट। परे हट। मैं दूध का धुला हुआ हूँ। मैं रिश्वत नहीं लूँगा, गबन नहीं करूँगा, पर - नारी को कुदृष्टि से नहीं देखूँगा,(अपनी की कोई बात नहीं, वहाँ छूट है।) उसके साथ उसकी इच्छा से भी या इच्छा -विरुद्ध कोई असामाजिक और अनैतिक कृत्य नहीं करूँगा, चोरी से बिजली नहीं जलाऊंगा, टॉल टैक्स बिना चुकाए अपनी गाड़ी नहीं ले जाऊंगा। लाइन तोड़कर टिकट ,राशन या अन्य कोई दुराचरण नहीं करूँगा, दूध,घी,तेल, धनियां ,मिर्च, हल्दी आदि में अवांछनीय तत्त्वों की मिलावट नहीं करूँगा। अन्याय न करूँगा न,समर्थन करूँगा न होने ही दूँगा। बड़ी -बड़ी आदर्श लिपटी बातें हैं। जिन्हें हम अन्यत्र देखना पसंद नहीं करते। परंतु जब अपनी बारी आती है ,तो वही काम करने के अवसर तलाशते हैं।इस प्रकार 'भ्रष्टाचार का विरोध ' विशुद्ध आदर्शवाद का नारा भर है। जिसका मुहूर्त से लेकर समापन तक बड़े जोश -ओ - खरोश के साथ महिमा मंडित करते हुए किया जाता है ;किन्तु अंत में परिणाम के नाम पर मात्र नौ दिन चले अढ़ाई कोस की यात्रा ही तय हो पाती है। अर्थात टाँय - टाँय फुस ! कथनी छपी अखबार में और करनी गई चूहे के बिल में घुस!

         यह 'होमो शेप की जिंस' अर्थात आदमी अनेक रूपों में चलता -विचरता है। नेता,मंत्री,अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, अधिवक्ता, न्यायाधिकारी,युवा, प्रौढ़, वृद्ध, नारी, पति ,शिक्षक, कवि,साहित्यकार,पत्रकार, इंजीनियर ,ठेकेदार,स्वर्णकार, लौहकार आदि -आदि अनेक रूपों में अपने चाल -चरित्र दिखलाता है। त्रिया ही नहीं ,पुरुष भी अपने चरित्र के विविध रंग दिखाए बिना रुकता नहीं, थमता नहीं। कौन किसकी दुम उठाए , जिधर देखो वहाँ सब मादा ही मादा। क्या चोर - डकैत !क्या जाँच अधिकारी का इरादा! एक से एक ज्यादा। एक भी पुरुष नर नहीं ,सब मादा ही मादा।

         यही कारण है कि भ्रष्टाचार के विरोध का कोई भी आंदोलन कहीं भी और कभी भी सफल नहीं होता। हो ही नहीं सकता।राजनीति में तो ये एक खेल की तरह चलते ही रहना है। जिसमें न कभी जीत है न हार है।आन्दोलन बराबर बरकरार है।जब कोठरी ही काजल से काली है ,तो कोई सयाना भला बच भी कैसे सकता है!ये सयाने लोग तो पहले ही अंदर और बाहर से काले हैं। फिर चिंता ही किस बात की है ? बस जाँच चल रही है। चलती रहने वाली प्रक्रिया है। उसे तो चलना ही है क्योंकि उसका काम ही चलना है। तभी तो बाहरियों को मचलने में ठगना है। कुछ दिन की जाँच के बाद वापस घर को पलायन करना है। यह जाँच प्रक्रिया न रुकने वाला झरना है।क्या सच्ची -मुच्ची जाँच करके उन्हें मरना है ?

          भ्रष्टाचार के विरोध रूपी खेल को राजनैतिक दल प्रायः खेलते रहते हैं। कभी विपक्ष सत्ता पक्ष का प्रबल विरोध करता है और उधर सत्ता पक्ष अपने बहुमत से उसे दबाकर खुश हो लेता है।बहरहाल भ्रष्टाचार सबके पसंद की चीज है। विपक्ष इसलिए दुःखी है क्योंकि उसे अवसर नहीं मिला और सत्ता पक्ष आने वाले पाँच वर्षों में सत्ता के जाने की आशंका से भयभीत है कि कल ये मौका उन्हें न मिल जाए जो विपक्ष में बैठे हैं। अंततः यह सबके पसंद की चीज है। सब इसका रस लेने को लालायित हैं। येन केन प्रकारेण सत्ता का हत्था हथियाना ही उनका लक्ष्य है।अब उसमें क्या देखना कि क्या भक्ष्य या क्या अभक्ष्य है। यह संस्कार की तरह खून में रस - बस गया है।जो मनुजाद के मन औऱ तन को कस गया है।इसलिए जो इसे कर रहे हैं ,वे तो खुश हैं ही ।जो नहीं कर पाए हैं ,वे उस सुनहरी घड़ी के लिए बेताब हैं,आशान्वित हैं। इसलिए भर- भर भगौने कीचड़ उछाल महोत्सव मना रहे हैं।

 सबको प्रिय है भ्रष्टता, खुल कर कहे न एक।

 औरों को   दिखला रहे, अपना नेक विवेक।। 

 सिंहासन   वह चाहिए, जिस पर तू आरूढ़।

 सिद्ध    तुझे करना मुझे,तू दिमाग से मूढ़।।

 बूँद-बूँद  में खून   की, व्यापित भ्रष्टाचार।

 नर- नारी  कोई नहीं,न हो  भ्रष्टता - प्यार।। 

 थैली    में    सब   एक  से, चट्टे-बट्टे मीत।

 बुद्धिमान  कहला रहा,चोरी करे अभीत।।


 भ्रष्ट चदरिया ओढ़कर,दिखलाते नव रंग।

 सबको केवल एक ही,चढ़ी अनौखी भंग।।

 ● शुभमस्तु ! 

 14.08.2023◆ 6.00पतन म मार्तण्डस्य। 

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