338/2023
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●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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ऐसे अपने
हाथ घुमाकर
पकड़ो दोनों कान।
हम कहते जो
वही सत्य है
लाख टके की बात।
यदि दिन को हम
रात बताएँ
तुम भी कहना रात।।
खाली कर दो
भेजा अपना
कहते हम वह मान।
राजा होता
ईश्वर सबका
रख इसमें विश्वास।
हम भी तो हैं
राजा अब के
समझ नहीं ये हास।
दाना डालें
उतना चुग ले
मत अपनी तू तान।
चित भी मेरी
पट भी मेरी
मेरे ऊपर निर्भर।
एक शब्द जो
बोला उलटा
नहीं लगेगा पल भर।।
मिट जाएगा
मूढ़ प्रजाजन
जान-मान अहसान।
तानाशाही
कोई कहता
कोई माने राम।
बंधु विभीषण
साथ हमारे
कर दें काम तमाम।।
सेवा में रत
पड़े चरण में
महाबली धनवान।
अमृत आया
बाँट हमारे
चाट रहे जन ओस।
सदा हमारे
साथ रहेगी
कुर्सी सौ - सौ कोस।।
हम ही सूरज
अंधकार तुम
गाएँ जनगण गान।
●शुभमस्तु !
07.08.2023◆6.45प०मा०
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