347/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
सद्गुण से पहचान,सहज सुलभ महिमा नहीं।
यदि मिलता सम्मान,पाकर कभी न खोइए।।
खोते नहीं महान,महिमा पाकर ख्याति की।
घटा न इसका मान ,दुर्लभ होती साधना।।
शेर वहाँ भी शेर, शेर यहाँ भी शेर है।
महिमा मिटा अदेर, मृताहार करता नहीं।।
देता दिव्य प्रकाश,सूरज की महिमा यही।
तम का करता नाश,दृश्यमान जग को करे।।
महिमा का शुभ रूप,अंबर की विस्तीर्णता।
नहीं समझना कूप,निधि अथाह क्या मापना?
अमर तिरंगा शान,महिमा भारत देश की।
ऊँची भरे उड़ान, मान नहीं इसका घटे।।
संतति करे न हानि, महिमा गुरु, माँ, तात की।
करती मन में ग्लानि,पड़ी नरक में भोगती।।
लेता नर आकार, धरती भरती अंक में।
वही एक आधार, महिमा की रक्षा करें।।
नर - नारी की देह,पंच तत्त्व निर्मित सभी।
अंतिम गति है खेह,मत महिमा विस्मृत करे।।
भूल न राधेश्याम,महिमा सीताराम की।
अमर जगत में नाम,प्रेरक ये अवतार है।।
अमर बनाती नाम, महिमा बस सत्कर्म की।
रवि को करें प्रणाम,अंधकार रहता नहीं।।
●शुभमस्तु !
10.08.2023◆3.15प०मा०
●●●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें