337/2023
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●©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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अहंकार की मैली काई।
जन-जन के उर में अति छाई।।
अहंकार ने नाशी प्रज्ञा।
गुरु की करता शिष्य अवज्ञा।।
भरा दृष्टि में तम ही काला।
समझ रहा है मूढ़ निराला।।
सूरज पर बादल छा जाते।
क्या बिगाड़ उसका कर पाते??
अहंकार उन्नति का बाधक।
पथ का पाहन शोषक ग्राहक।।
तन-मन से विनीत जो होते।
सद सुमनों की माला पोते।।
शिष्य नहीं नव विद्या पाता।
अहंकार जब उस पर छाता।।
ज्ञान - चक्षु अंधे हो जाते।
अहं - तमस में तेज नसाते।।
अहंकार ने रावण मारा।
कृष्णचन्द्र ने कंस सँहारा।।
सुंदर सूपनखा - सी नारी।
सम्मोहिनी शक्ति निज मारी।।
नाक लखन के हाथ कटाई।
सुंदरता निज अहं नसाई।।
दानव आज बढ़े अतिचारी।
अत्याचार करें पथ भारी।।
अहंकार की जीवन - लीला।
बनती शीघ्र मृत्यु का टीला।।
त्याग अहं जो नित बढ़ता है।
'शुभम्' वही गिरि पर चढ़ता है।।
●शुभमस्तु !
07.08.2023 ◆10.30 आ०मा०
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