350/2023
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● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सुनें दाहिने कान से ,निकले बाएँ कान।
मनमानी में मस्त वे, रहते अपनी तान।।
मतलब की सुनते सभी, बैठ भागवत बीच,
चर्चा चूल्हे की चले,आलू- कथा पुरान।
सुनिए सबकी बात को,करिए मन के काम,
बिना शुल्क के ज्ञान को,मिले न जग में मान।
माँगे बिना सलाह के, बहु उपदेशक भीड़,
गली - गली में बाँटती, ज्यों प्रसाद का दान।
छोटा करे अनीति है, बड़ा करे तो नीति,
क्यों समर्थ को दोष दें, वह ज्ञानी गुणवान।
सीधे - सीधे कट रहे,टेढ़ा कटे न एक,
मानो मत जा देख लो,वन में वृक्ष - कटान।
नारों से ही देश की, चलती है सरकार,
करते हैं कुछ और ही, कूटनीति को जान।
चमचे पिछलग्गू बने, चाट रहे हैं खीर,
सच बोले जो बात को,रहे न नाक न कान।
'शुभम्' उसी की भैंस है,लाठी जिसके हाथ,
लाल टमाटर गा रहे,जनगण धन का गान।
●शुभमस्तु !
12.08.2023◆2.45पतनम मार्तण्डस्य।
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